Wednesday, February 27, 2008

हम सोचते रह गए

Monday, February 25, 2008

दिन के उजाले कम क्यों हो गये हैं।

पंख अब हम कहाँ फैलायें
आसमां क्यों सिकुड़ सा गया है
सूरज तो रोज ही उगता है
दिन के उजाले कम क्यों हो गये हैं।

आँखों में है धूल और पसीना
मंजिल धुँधली नजर आ रही है
अभी तो दिन ढला ही नहीं
साये क्यों लंबे हो गये हैं।

अंधेरों की अब आदत पड़ सी गई है
ऑखें चुंधियाती हैं शीतल चांदनी में
बियाबां की डरावनी शक्लें हैं
चेहरे ही गुम क्यों हो गये हैं।

जमीं पे पाया औ यहीं है खोया
क्यों ढूढते हैं हम अब आसमां में
हम वही हैं कारवां भी वही है
पर आदमी अब कम क्यों हो गये हैं।
-मथुरा कलौनी

Wednesday, February 20, 2008

आखिर है क्या यह प्यार

यह क्या बात हुई कि प्यार जताने के लिये साल का एक दिन निश्चित हो। ऐसी ऊलजलूल बातें पश्चिम से ही इम्पोर्ट होती हैं। जैसे वैलेन्टाइन डे न हो तो दुनियाँ से प्यार ही गायब हो जाय। प्यार तो कभी भी हो सकता है। उसे जताने के लिये वैलेन्टाइन डे तक इंतजार करना वेवकूफी है। यह निर्विवाद सत्य है कि प्यार कभी भी हो सकता है। पर रहता कितनी देर है, यह विवादास्पद है। आज प्यार हुआ तो मेरी मानिये आज ही गुलाब का फूल दे डालिये। इंतजार कीजियेगा तो हो सकता है कि प्यार हुआ, उफान पर आया और गुलाब का फूल देने से पहले ही फिस्स हो कर मर गया। वैलेन्टाइन डे तक तो पता चला पार्टनर चार बार बदल चुके हैं।

आखिर है क्या यह प्यार?
मेरे हिसाब से प्यार एक भावनात्मक क्षण है। आज से सहस्रों वर्ष पहले जब प्यार का आविष्कार हुआ था तब लोगों के पास कामकाज तो अधिक था नहीं। पूरा का पूरा जीवन होता था उनके सामने, भावना में बहने के लिये। तभी शायद कहा गया होगा कि प्रेम ही जीवन है। पर आजकल की भागमभाग में प्रेम के लिये केवल क्षण ही उपलब्ध है। लड़का-लड़की, भावना, वातावरण आदि जब सही मात्रा में मिक्स होते हैं तो झट से प्यार हो जाता है। जब वातावरण में किसी भी कारण थोड़ा भी बदलाव आता है तो मिक्सचर बिगड़ जाता है। मिक्सचर बिगड़ा तो प्यार समाप्त। यह अगले ही क्षण हो सकता है।
आप नहीं मानते!

डंडा - अस्त्र है या शस्त्र ?

फेंक कर मारा जाय तो अस्त्र है।
जम कर लगाया जाय तो शस्त्र है।

Sunday, February 17, 2008

कुछ नई परिभाषाएं

कंट्रोल करना - होनी को कौन टाल सकता है?
विशेषज्ञ - किसी एक विशेष विषय को छोड़ कर बाकी विषयों में शून्य।
यदि, यद्यपि - जो संभव न हो। भविष्यवक्ता का तकिया कलाम। यदि नौ मन तेल होता तो राधा अवश्य नाचती।
चुटकुला, जोक - राजनैतिक गठबंधन।
पागल - स्वतंत्र सोचने वाला।
मनुष्य - आदमी या औरत।
आत्मा - अपदार्थ।

वे दिन

वर्तमान सदा रहा है बोर
दैनिक चिंताओं और परेशानियों का शोर
कितना मधुर होता है अतीत
वर्तमान जब होता है व्यतीत।

वह स्कूल औ' कॉलेज के दिन
चिंता परीक्षाओं की, किताबों की घुटन
अनुशासन में बँधा तब का जीवन
आज लगता कितना स्वच्छंद

वह बाप की डपट औ' माँ की फटकार
पहली सिगरेट सुलगाते जब चाचा ने देखा
वह काफ़ी हाउस के झगड़े तोड़फोड़
खींच रहे हैं होठों में स्मित रेखा

एक के बाद एक आ रहे हैं
बीते दिन पकड़कर यादों की डोर
और अपेक्षा में बैठा हूँ मैं
कब जाएगा वर्तमान अतीत की ओर
- मथुरा कलौनी

नफरत की सियाही

हुस्न है अदा भी है
आशिक़ ही दहशतोजुनूं को माशूक बनाए हुए हैं
सूरज औ चॉंद की रोशनी भी क्या करे
फ़ख्‍ऱ से मुँह में वे कालिख लगाए हुए हैं।

हम अब भी बाम पे जाते हैं,
चेहरे से नकाब सरकाते हैं।
देखने की ताब वो कहॉं से लाएँ,
जो सियाह रातों में चेहरा छुपाते हैं।

दिल ही नहीं देता है सदा,
नफरत की सियाही छाई हुई है।
जानलेवा तो अब भी है अदा,
पर मुहब्बत मुरझाई हुई है।

मथुरा कलौनी

चिलमन