Sunday, October 12, 2008

मोहनी मूरत

प्रिया में वे सभी गुण थे जो एक ऑफिस एसिस्टेंट के पद के लिए आवश्यक होते हैं। मोहिनी मूरत और सोहिनी सूरत। प्रचुर मेधा। सभी कुछ ठीक-ठाक और सुंदर। रिक्त पद के लिए उसका चयन हो गया।

सच बोलूँ तो मैं नहीं चाहता था कि ऑफिस एसिस्टेंट के पद के लिए प्रिया का चयन हो। मेरे लंबे अनुभव ने मुझे सिखाया है कि यदि कोई कन्या आपकी अधीनस्थ हो और प्रिया जैसी संघातिक रूपवती हो, तो वह अपने रूप के दंभ में इस तरह लिप्त होती है कि अंग्रजी में 'पेन इन दि नेक' यानी गर्दन का दर्द और हिंदी में सिर का दर्द साबित होती है। परंतु मेरा सौभाग्य कि प्रिया के संबंध में मेरे भय एकदम व्यर्थ सिद्ध हुए। वह एक आडंबर विहीन, परिश्रमी और कार्यकुशल लड़की निकली। हम कभी कितना गलत सोचते हैं।

एक दिन प्रिया एक विचित्र अनुरोध ले कर मेरे पास आई। वह ऑफिस के लेडीज टॉयलेट में एक फुल-लेन्थ आईना चाहती थी। पहले तो मुझे समझ में ही नहीं आया कि वह क्या चाहती है। जब समझ में आया तो विश्वास नहीं हुआ। यानी एक ऑफिस में पूरे शरीर को दर्शाने वाला आईना किसने देखा-सुना है। मैंने हंस कर उससे कहा कि वह पूरे आईने को भूल जाए और वाश बेसिन के ऊपर जो छोटा आईना है उसी से काम चलाए। मैं अधिक-से-अधिक उसे एक छोटा स्टूल दे सकता था, जिस पर खड़े हो कर वह वाश बेसिन के ऊपर लगे आईने में स्वयं को इंस्टालमेंट में देख सकती थी। जब मैंने उससे ऐसा कहा तो मेरे इस सरल परिहास पर उसे हँसी नहीं आई। पर अपना आईना वह भूली नहीं। उसने एक जिद सी पकड़ ली थी। उसे जब भी अवसर मिलता वह आईना माँगना नहीं भूलती।

उसके बार-बार माँगने से मैं इस तरह द्रवित हो गया था कि यदि मैं कहीं का राजा होता तो खुशी-खुशी अपना आधा राज्य उसे दे देता। मैंने बड़ी मुश्किल से उसे विश्वास दिलाया कि ऑफिस में लेडीज टॉयलेट में फुल-लेन्थ आईना लगवाना मेरे अधिकार क्षेत्र के बाहर है। अब वह यह अनुरोध करने लगी कि मैं मैनेजर के पास जाऊँ।

'असंभव।' मैंने कहा, ' अपनी बाल-प्वाइंट पेन के लिए जब भी नए रीफिल की आवश्यकता पड़ती है, मुझे उसे पुराना इस्तेमाल किया हुआ रीफिल दिखना पड़ता है, तक जा कर वह नया रीफिल सेंक्शन करता है। हमारा मैनेजर इस कदर कंजूस है। अब मैं उससे टॉयलेट में पूरे आईने की बात करूँ तो शायद उसकी हृदयगति ही रुक जाय।'

मेरी बात पर प्रिया को विश्वास नहीं हुआ। उसने मुझसे पूछा, ' मैं जाऊँ मैनेजर के पास।'

उसका ऐसा कहना मुझे कहीं छू गया। यह उसकी अच्छी प्रकृति थी कि उसने पहले मुझसे पूछा। नहीं तो उसकी जैसी मोहिनी-मूरत-सोहिनी-सूरत-लड़कियाँ सीधे चेयरमैन के ऑफिस में जा सकती हैं। एक अदना मैनेजर की क्या बिसात?

पर मैं अपने मैनेजर को अच्छी तरह जानता था। उसके जैसा शुष्क प्रकृति वाला व्यक्ति शायद ही कहीं हो। उसमें रस के नाम पर था रेगिस्तान ही रेगिस्तान। प्रिया की सोहनी सूरत से वह नहीं प्रभावित होने वाला था।

'उससे छह आईनों के लिए कहना।' मैंने राय दी।
'छह क्यों, मुझे तो केवल एक चाहिए।' प्रिया ने कहा। मुझे मालूम था कि वह ऐसा ही कहेगी।

'इस ऑफिस में यदि किसी एक वस्तु की आवश्यकता होती है तो छह माँगनी पड़ती हैं। मुझे मालूम है, मैनेजर के खानदान में मोल-भाव करने की बड़ी पुरानी परंपरा है। मेरी मानो, छह माँगना। यदि उसका मूड ठीक रहा तो शायद तुम्हें एक आईना सेंक्शन कर दे। गुड लक!' मैंने कहा।

प्रिया मैनेजर के कमरे में गई और पाँच मिनटों में बाहर आ गई। उसके चेहरे के भाव देख कर मैं समझ गया कि उसे सफलता नहीं मिली। मुझे उसके ऊपर अपार दया आई। भगवान ने उसे इतनी मोहिनी सूरत दी है, पर क्या फायदा? इतिहास साक्षी है कि अच्छी सूरत के कारण लोग राजपाट छोड़ देते हैं। पर यहाँ एक कंजूस मैनेजर की मुट्ठी से प्रिया एक साधारण आईना नहीं छुड़ा पाई। भले ही उसमें रूप का दंभ न हो पर उसके स्वाभिमान को तो ठेस पहुँचनी ही थी।

'यह क्या हो गया है, मेरी तो समझ में ही नहीं आ रहा है।' उसने खोए हुए अंदाज में कहा।

'टेक इट ईजी प्रिया! तुम चिंता न करो। मैं कुछ-न-कुछ करूँगा तुम्हारे आईने के लिए।' मैंने उसे दिलासा देने का प्रयत्न किया।

'तुम समझ नहीं रहे हो। मैनेजर ने मुझे छह आईने सेंक्शन कर दिए हैं।' प्रिया ने कहा।

------------------------------------------------------------------------------------

Wednesday, October 1, 2008

क्‍या पता मेरा डिप्रेशन लौट आये !

1
रिटायर होने के बाद मैंने देखा कि लोग आपके स्वास्थ्य के प्रति बहुत उत्सुक हो जाते हैं। जब भी कोई मिलता है या जब किसी से फोन में बात होती है तो जरूर पूछता है कि आपका स्वास्थ्य कैसा है। यह बात मैंने अपने एक मित्र से कही जो रिटायरमेंट में मुझसे काफी सीनियर हैं, तो उन्होने मुझे हिदायत दी, खबरदार अपने आफिस कभी मत जाना। वहाँ लोग तुम्हारे स्वास्थ्य के बारे में तो पूछेंगे ही, पर प्रच्छन्न और परोक्ष रूप में आश्चर्य करेंगे कि तुम अभी तक जीवित हो। तुम्हारा स्वास्थ्य अभी तक अच्छा है! यह सब हुआ कैसे?
मैंने उनकी बात सुन तो ली पर विश्वास नहीं हुआ। ऐसा भी कहीं होता है! जिनके साथ जीवन के बेहतरीन साल निकाले, ऊँच नीच में साथ रहे, जिंदादिल पाटिर्र्यों का आनंद उठाया, वे आफिस में व्यस्तता के कारण भले ही आपको उचित समय नहीं दे पायें, पर आपके बारे यह सोचें कि आप जिंदा कैसे हैं... नहीं नहीं कभी नहीं।
परसों मैं अपने पुराने आफिस गया था।

2
सोचा था रिटायरमेंट के बाद दुनिया घूमेंगे। जहाँ कभी अकेले गए थे वहाँ सपत्नीक जाएँगे। यार दोस्तों के बुलावे भी आ ही रहे हैं। अक्टूबर का महीना चुना विदेश जाने के लिए। पर हा भाग्य!
रिटायरमेंट के बाद मैंने बुद्धिमानी यह की थी कि बहुत सारा पैसा शेयर मार्केट में लगा दिया। कल खबर आई कि सेंसेक्स 40 प्रतिशत नीचे है और 30 प्रतिशत और नीचे जाने की संभावना है।

3
सोचा और कुछ संभव नहीं तो नाटक करेंगे। पिछला नाटक जून में किया था। अब समय आ गया है नए नाटक का। हिन्दी में नए नाटकों अभाव है यह तो मालूम था। स्थिति इतनी दयनीय है, यह तब पता चला जब मैंने सभी नाटक छान मारे और अपने मतलब का कोई नहीं मिला। नया नाटक लिखने का उत्साह नहीं पा रहा हूँ। अत: नए नाटक का मंचन अनिश्चित काल के लिए स्थगित करना पड़ रहा है।

4
2 अक्टूबर से देश में नया कानून आ रहा है जिसके तहत धूम्रपान में कठोर प्रतिबंध लगेगा। सड़क छोड़ कर सब जगह धूम्रपान निषिद्ध होगा। मैं अपने प्रिय पब में अपने प्रिय पेय के साथ अपनी प्रिय सिगरेट नहीं सुलगा पाऊँगा।


ऐसे ही एक दो और कारण हैं जिनके सामूहिक प्रभाव से मुझे कल कुछ गंभीर प्रकार का डिप्रेशन हो गया था। नैराश्य के अंधकार में गिरता चला गया था। कुछ करने को दिल ही नहीं कर रहा था। इस गहन नैराश्य से बाहर निकलने के लिए कुछ यार दोस्तों को फोन किया।
दिल्ली वाले ने कहा, "अबे काहे का डिप्रेशन। अगली फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आ जा। तेरा डिप्रेशन दूर कर दूँगा।"

यह तो सही है कि जब तक उसके साथ रहूँगा डिप्रेशन पास भी नहीं फटकेगा पर जब मैंने आने जाने के खर्चे का हिसाब लगाया तो डर लगा कि कहीं दिल्ली से आने बाद डबल डिप्रेशन न हो जाय।

कलकत्ते वाले ने अच्छी राय दी। "तुमने इतने शौक कसे ड्रिंक्स कैबिनेट बनवाई किसलिये थी। बस उसे खोल कर सामने बैठ जा। फिर देख डिप्रेशन दुम दबा कर कैसे भागता है।"

यह राय मुझे जँच गई। मैंने बोतल निकाली तो पत्नी ने आवाज दी क्या आज दोपहर से ही चालू हो रहे हो?
मैंने कहा कि मेरे दोस्त ने यही राय दी है क्यों कि आज मुझे डिप्रशन है।

"तुमको डिप्रेशन है?" पत्नी ने कहा। जो शब्दों में नहीं कहा और चेहरे के भाव से दर्शाया वह था "खबरदार मेरे पास मत आना। नहीं तो मुझे भी डिप्रेशन हो जाएगा।"

जब भी मैं अपनी पत्नी को अपनी व्यथा कथा सुनाता हूँ तो वे मुझसे भी अधिक डिप्रेश हो जाती हैंं। अब जब कभी मुझे भारी-भरकम टाइप का डिप्रशन होता हे वे मेरे पास नहीं फटकती हैं। इस बार तो वे अपनी सहेली का जन्मदिन मनाने चली गईं। शाम को जब लौटीं तो मेरा डिप्रेशन तो वैसा ही था पर अब वह 'रायल चैलेंज' में तैर रहा था। शाम को मैं जल्दी 'सो' गया। आज सुबह देर से तीन मन भारी सिर ले कर उठा।

कार्पोरेट दिनों की याद स्वरूप 'रेमी मार्टिन' बची हुई थी। उसका सेवन कर इस लायक हुआ कि यह व्लॉग लिख सकूँ। डिप्रेशन का तो पता नहीं क्या हुआ। थोड़ी देर में जब 'रायल चैलेंज' और 'रेमी मार्टिन' का असर कम होगा तब पता चलेगा। क्या पता डिप्रेशन लौटे न लौटे।