Wednesday, October 1, 2008

क्‍या पता मेरा डिप्रेशन लौट आये !

1
रिटायर होने के बाद मैंने देखा कि लोग आपके स्वास्थ्य के प्रति बहुत उत्सुक हो जाते हैं। जब भी कोई मिलता है या जब किसी से फोन में बात होती है तो जरूर पूछता है कि आपका स्वास्थ्य कैसा है। यह बात मैंने अपने एक मित्र से कही जो रिटायरमेंट में मुझसे काफी सीनियर हैं, तो उन्होने मुझे हिदायत दी, खबरदार अपने आफिस कभी मत जाना। वहाँ लोग तुम्हारे स्वास्थ्य के बारे में तो पूछेंगे ही, पर प्रच्छन्न और परोक्ष रूप में आश्चर्य करेंगे कि तुम अभी तक जीवित हो। तुम्हारा स्वास्थ्य अभी तक अच्छा है! यह सब हुआ कैसे?
मैंने उनकी बात सुन तो ली पर विश्वास नहीं हुआ। ऐसा भी कहीं होता है! जिनके साथ जीवन के बेहतरीन साल निकाले, ऊँच नीच में साथ रहे, जिंदादिल पाटिर्र्यों का आनंद उठाया, वे आफिस में व्यस्तता के कारण भले ही आपको उचित समय नहीं दे पायें, पर आपके बारे यह सोचें कि आप जिंदा कैसे हैं... नहीं नहीं कभी नहीं।
परसों मैं अपने पुराने आफिस गया था।

2
सोचा था रिटायरमेंट के बाद दुनिया घूमेंगे। जहाँ कभी अकेले गए थे वहाँ सपत्नीक जाएँगे। यार दोस्तों के बुलावे भी आ ही रहे हैं। अक्टूबर का महीना चुना विदेश जाने के लिए। पर हा भाग्य!
रिटायरमेंट के बाद मैंने बुद्धिमानी यह की थी कि बहुत सारा पैसा शेयर मार्केट में लगा दिया। कल खबर आई कि सेंसेक्स 40 प्रतिशत नीचे है और 30 प्रतिशत और नीचे जाने की संभावना है।

3
सोचा और कुछ संभव नहीं तो नाटक करेंगे। पिछला नाटक जून में किया था। अब समय आ गया है नए नाटक का। हिन्दी में नए नाटकों अभाव है यह तो मालूम था। स्थिति इतनी दयनीय है, यह तब पता चला जब मैंने सभी नाटक छान मारे और अपने मतलब का कोई नहीं मिला। नया नाटक लिखने का उत्साह नहीं पा रहा हूँ। अत: नए नाटक का मंचन अनिश्चित काल के लिए स्थगित करना पड़ रहा है।

4
2 अक्टूबर से देश में नया कानून आ रहा है जिसके तहत धूम्रपान में कठोर प्रतिबंध लगेगा। सड़क छोड़ कर सब जगह धूम्रपान निषिद्ध होगा। मैं अपने प्रिय पब में अपने प्रिय पेय के साथ अपनी प्रिय सिगरेट नहीं सुलगा पाऊँगा।


ऐसे ही एक दो और कारण हैं जिनके सामूहिक प्रभाव से मुझे कल कुछ गंभीर प्रकार का डिप्रेशन हो गया था। नैराश्य के अंधकार में गिरता चला गया था। कुछ करने को दिल ही नहीं कर रहा था। इस गहन नैराश्य से बाहर निकलने के लिए कुछ यार दोस्तों को फोन किया।
दिल्ली वाले ने कहा, "अबे काहे का डिप्रेशन। अगली फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली आ जा। तेरा डिप्रेशन दूर कर दूँगा।"

यह तो सही है कि जब तक उसके साथ रहूँगा डिप्रेशन पास भी नहीं फटकेगा पर जब मैंने आने जाने के खर्चे का हिसाब लगाया तो डर लगा कि कहीं दिल्ली से आने बाद डबल डिप्रेशन न हो जाय।

कलकत्ते वाले ने अच्छी राय दी। "तुमने इतने शौक कसे ड्रिंक्स कैबिनेट बनवाई किसलिये थी। बस उसे खोल कर सामने बैठ जा। फिर देख डिप्रेशन दुम दबा कर कैसे भागता है।"

यह राय मुझे जँच गई। मैंने बोतल निकाली तो पत्नी ने आवाज दी क्या आज दोपहर से ही चालू हो रहे हो?
मैंने कहा कि मेरे दोस्त ने यही राय दी है क्यों कि आज मुझे डिप्रशन है।

"तुमको डिप्रेशन है?" पत्नी ने कहा। जो शब्दों में नहीं कहा और चेहरे के भाव से दर्शाया वह था "खबरदार मेरे पास मत आना। नहीं तो मुझे भी डिप्रेशन हो जाएगा।"

जब भी मैं अपनी पत्नी को अपनी व्यथा कथा सुनाता हूँ तो वे मुझसे भी अधिक डिप्रेश हो जाती हैंं। अब जब कभी मुझे भारी-भरकम टाइप का डिप्रशन होता हे वे मेरे पास नहीं फटकती हैं। इस बार तो वे अपनी सहेली का जन्मदिन मनाने चली गईं। शाम को जब लौटीं तो मेरा डिप्रेशन तो वैसा ही था पर अब वह 'रायल चैलेंज' में तैर रहा था। शाम को मैं जल्दी 'सो' गया। आज सुबह देर से तीन मन भारी सिर ले कर उठा।

कार्पोरेट दिनों की याद स्वरूप 'रेमी मार्टिन' बची हुई थी। उसका सेवन कर इस लायक हुआ कि यह व्लॉग लिख सकूँ। डिप्रेशन का तो पता नहीं क्या हुआ। थोड़ी देर में जब 'रायल चैलेंज' और 'रेमी मार्टिन' का असर कम होगा तब पता चलेगा। क्या पता डिप्रेशन लौटे न लौटे।

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