Friday, May 1, 2009

ख़राशें



पिछले नाटक में बहुत हँस लिये अब हँसी रोक कर एक गंभीर विषय पर कुछ देर सोच लें। गुलज़ार के शब्दों में

'ज़रा सा आओ न, बैठो वतन की बात करें।'

यों तो वतन की बात टाइमपास करने के लिये की जाती है। बैठकों में ज्ञान प्रदर्शन के लिये की गई बौद्धिक बकवास। पर हम वतन की बात को मंच पर ले आये हैं क्यों कि गुलज़ार कहते हैं

उम्मीदें डूब गई जो निगल-निगल के भँवर-
उम्मीदें हाँप रही हैं जो बादबानों में
उम्मीदो-शौक़ के क़त्लो-ग़बन की बात करें-
वतन की बात करें?

हम सांप्रदायिक हिंसा के उस घिनौने दौर से वे गुज़रे हैं जब फ़िरक़ावाराना वहशत ने इंसानियत के जिस्म में ख़राशें पैदा कीं थी। पर समय के गुज़रने के साथ कुछ बदला नहीं। पुराने ज़ख़्म भरने भी नहीं पाते कि फिर दंगे और फिर ख़राशें।

इस दर्दनाक क़िस्से को गुलज़ार ने बड़ी बेबाकी से हमारे सामने रखा है- ख़राशें में।

गुलज़ार की इन कविताओं और कहानियों में विषम परिस्थितियों में भी इंसानियत का चेहरा चमक कर सामने आया है। कवि हमसे कोंच कोंच कर पूछता है यदि आप ऐसी विकट परिस्थिति में फँसें तो आपकी सोच पर मज़हब का पर्दा होगा या इंसानियत की समझ।

मंचन जून 5 और 6 को है। यदि आप उस समय बेंगलोर में हैं तो अवश्य आयें।

Venue

Alliance Francaise de Bangalore
Millers Tank Bund Road,
Vasanth Nagar

Date and Time
Friday 5th June 2009 at 7:45 PM
Saturday 6th June at 4 PM and 7PM

Ticket Rs 150

Available at
Super Market, 5th Avenue, Brigade Road
New Arya Bhavan Sweets, all outlets
also available online
http://www.buzzintown.com/

Contact
9341220780 / 9845804430
editor@kalayan.org


नाट्य संस्था कलायन
निर्देशन मथुरा कलौनी
लेखक गुलज़ार
परिकल्पना सलीम आरिफ

मंच पर
सुदर्शन राजगोपाल
दीपक अजमानी
सनिल यती
योगी वर्मा
परमजीत
चिन्मय मुखी
रवि यादव


फातिमा फारिया

2 comments:

Udan Tashtari said...

कल ही आपकी याद आई थी..आजकल आप दिखते ही नहीं. कैसे हैं?

अब देखकर तसल्ली हुई.

मथुरा कलौनी said...

समीर जी
आशा है आप स्‍वस्‍थ और सानंद होंगे। नाटक की व्‍यस्‍तता के कारण व्‍लॉग पर समुचित ध्‍यान नहीं दे पाया। मंचन के बाद समय मिलेगा।

धन्‍यवाद